Add To collaction

भटकती आत्मा





सौरभ शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के दो सौ उन छात्रों के समूह के साथ था जो महाविद्यालय की और से शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम के तहत नेतरहाट आए हुए थे l उनका उद्देश्य नेतरहाट का सूर्योदय एवं सूर्यास्त देखना था l उनके ठहरने की व्यवस्था नेतरहाट के आवासिय विद्यालय में की गई थी परन्तु उन्हें  नेतरहाट पहुंचते काफी देर हो गई थी तो उनकी बस सीधा मैगनोलिया पॉइंट के पास ही पहुंची सूर्यास्त देखने के लिए l लगभग चार बजे का समय था l सूर्य अपनी सुनहरी चादर प्रकृति के प्रांगण में फैलाए हुए था l चारों ओर जंगल का साम्राज्य था  l बड़े-बड़े अनगिनत पेड़ गर्व से उन्नत खड़े मुस्कुरा रहे थे l दूर-दूर तक जंगल ही जंगल ¡ चारों तरफ हरीतिमा का सुंदर और मनमोहक आंचल ¡ इर्द गिर्द क्षितिज के छोर पर स्थित पर्वत मालाएं मानो मौन तपस्विनी सी साधना रत थी l बहुत ही मनोहर दृश्य था l सब छात्र मैगनोलिया पॉइंट के समीप खड़े होकर हजारों फीट नीचे के दृष्यों को झुक झुक कर अपनी आंखों में समेट रहे थे l सौरभ कुछ दूरी पर स्थित एक टीले पर बैठा प्राकृतिक सुषमा के मनमोहक यौवन को निसंकोच होकर निहार रहा था ल


कुछ देर के बाद सूर्य का लालगोला आंग्ल भाषा के डब्ल्यू अक्षर के आकार वाले -  क्षितिज के छोर पर स्थित पर्वत के ऊपर पहुंच गया l दृश्य लुभावना हो चला l ऐसा प्रतीत होता था मानो सूर्य अपनी  रश्मियों को समेट कर स्व-नीड़ में समा जाना चाहता हो l पर्वत पर स्थित सूर्य का लालगोला वैज्ञानिकों की नजरों मे आग का धधकता हुआ गोला प्रतीत होता था, एक कवि के दृष्टिकोण से वह सूर्य का लालगोला प्रकृति परी की ललाट पर सजी हुई बिंदिया सी लग रही थी, और बालकों की निगाह में सूर्य का गोला रस पल्लवित लाल-लाल रसगुल्ला जैसा लगता था | सूर्य का वह लाल गोला सबके लिये अलग-अलग प्रतीक में उपमेय था परन्तु लुभावना सबके लिये था l क्षणभर बाद गोले का आकार कुछ कट गया मानो सूर्य पर्वत से धीरे-धीरे नीचे समुद्र में उतर रहा हो, कुछ देर के बाद सूर्य का अर्धवृत्त ही दृष्टि पथ पर रह गया; और क्षण भर बाद वह भी विलुप्त हो गया, मानो सूर्य पर्वत से लुढ़क कर किसी खाई में गिर पड़ा हो l अब धीरे-धीरे संध्या रानी अपनी सहेली वसुधा से मिलने धरती पर आने लगी ल


   मंद मंद पवन टहल सा रहा था l वृक्षों पर कलरव करते हुए पक्षी वृंद ! मुस्कुराते हुए वन्य पुष्प!!अंधकार के गर्भ में  सिमटती हुई पर्वत मालाएं!! प्रकृति परी के साथ प्रेम गीत गाते हुए वृक्ष और उनकी सहेलियां लताएं ! वातावरण का चप्पा चप्पा शांत था l संध्या रानी का आंचल अब कुछ ज्यादा ही काला हो चला था l धीरे धीरे संध्या रानी के  गहन आंचल की कज्जल कालिमा  के प्रवहमान प्रवर्षण से वह वनस्थली आच्छादित होती जा रही थी l विहंग-गण की पंक्त्तिबद्ध कलरव-धारा आकाश मार्ग से सेमल और चीर के वृक्षों पर निर्मित  ढेर से नीड़ों की ओर प्रवाहित हो रहे थे!


   सूक्ष्म अंधकार पल्लवों शाखाओं और  तृणों पर सो सा रहा था l सौरभ मगन हो  इस मनमोहक विलक्षण दृश्य को निहारता कब मैगनोलिया पॉइंट से थोड़ी दूर स्थित वृक्ष के पास पहुंच गया था पता ही नहीं चला l इन नयनाभिराम दृश्यावली को  निहारता हुआ एक प्रस्तर खंड पर बैठा हुआ कहीं दूर जाने किस स्वप्न में खोया हुआ था, उसे कुछ ज्ञात नहीं हो पाया कब उसके साथी एक एक कर आस पास से उठकर जा चुके थे l किसी की दृष्टि उस पर पड़ी नहीं थी l पड़ती कैसे- एक किनारे काफी दूरी पर जो बैठा था वह l अचानक किसी वन्य जंतु की भयावह आवाज पर उसकी तंद्रा टूटी, और उसने देखा आसपास घना अंधकार है; और उसका कोई भी मित्र वहाँ नहीं है!


उसने आसपास तलाश किया,उसकी बस भी नहीं थी वहाँ l चारों दिशाओं में अब सन्नाटा व्याप्त हो गया था l वह घबड़ा गया l छात्रों को लेकर तीन बसें आई थीं परंतु उनमें से एक भी उसे नहीं दिखा l नया स्थान,जंगल का वातावरण और आसपास कोई बस्ती भी नहीं घबड़ाहट से उसे पसीने छूटने लगे ठंड के मौसम में भी l वह निराश होकर इधर उधर दृष्टिपात करने लगा | कालिमा धारण करती हुई रजनी और बीहड़ जंगल के मध्य अकेला था वह l उसे वहां के मार्ग का भी ज्ञान नहीं था l नेतरहाट भ्रमण का उसका यह प्रथम अवसर था,इसलिए वह यहां के मार्ग से भी अनजान था l कुछ सोच कर मानव के चले हुए मार्ग का अनुसरण करते हुए अज्ञात पथ की ओर भ्र्मण करने लगा l कभी-कभी जंगली जानवरों का भयानक गर्जन तथा पत्तों की खड़खड़ाहट उसके अंत:स्थल को कंपा देता था l कितनी दूर तक वह जंगलों में भटकता रहा परन्तु उचित स्थान आश्रय लेने के लिए न मिला l वह घबड़ा गया l कभी उसे अपने आप पर और कभी अपने साथियों पर झुँझलाहट होती l उसके किसी साथी को तो बता देना चाहिए था कि सभी जा रहे हैं!



अब क्या करे इसी उहापोह में था कि उसके कर्ण पटल पर कुछ हलचल सी हुई  l टॉप ....... टॉप .......टॉप ! तबले की तरलाइत ताल सी ही मंद मधुर ध्वनि  से विशाल वन्य प्रांत का शांत और स्थिर पर्दा किंचित कंपन के साथ हौले से झंकृत होने लगा l और वह एक  ओर एक वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया l इस आशा में कि कोई शिकारी होगा तो वह उससे मदद की याचना करेगा l आवाज बहुत निकट आ गई और वह अवाक होकर अश्वारोही को देखने लगा l अश्व पर सवार व्यक्ति एक नहीं दो थे l एक भारतीय आदिवासी युवक तथा दूसरी एक पाश्चात्य सुंदरी ! पूर्णमासी का चांद आकाश में अपनी चांदनी बिखेर रहा था l उस चांदनी में सौरभ ने बिल्कुल साफ-साफ चेहरा देखा | अश्वारोही युगल आपस में हिंदी-अंग्रेजी मिश्रित शब्दों में बात करते,और अट्टहास करते निकल गये l सौरभ आश्चर्यचकित सा निहारता रह गया l कुछ भय सा अंतर में समाने लगा l फिर भी कुछ कौतूहल सा मन में हुआ और पुनः उसके पैर पीछे की ओर चुंबक की भांति खिंचते चले गये ल


वह उस अश्व का अनुगमन करने लगा, परंतु अश्व विद्युत गति से पता नहीं कहाँ विलुप्त हो गया l वह अपनी जिज्ञासा दबाए आगे बढ़ता ही रहा l लगभग सौ कदम चलने पर कुछ अस्पष्ट सी आवाज उसके कर्ण गह्वर में प्रवेश करने लगी l उत्साहित होकर वह और आगे बढ़ गया l आवाज अब स्पष्ट सुनाई पर रही थी l चारों तरफ उसने नजरें घुमाई आखिर वे लोग कहां से बोल रहे हैं l यह प्रश्न उसके मानस-स्थल पर रेंगने लगा l हठात उसकी  निगाह सामने के एक टीले से टकराई l धुंधली सी अस्पष्ट छाया प्रतिबिंबित हो रही थी l आपस में वे  आलिंगनबद्ध थे l अब उनकी बातचीत भी कर्ण गोचर होने लगी l
  " अब हमें कोई नहीं रोक सकता  मैग्नोलिया"|


   "हां डार्लिंग अमलोग अब फ्री महसूश करता हाय l अब कोई नहीं अमारे रास्ते में रोड़ा अटका सकता है हाय"|


   सौरभ के हृदय में भय का साम्राज्य स्थापित होने लगा l उनका अश्व भी कहीं दृष्टिगोचर न हुआ l कुछ देर के बाद वे लोग हाथों में हाथ डाले इस प्रकार वन्यप्रांत में कुलांचे भरते हुए भाव विह्वल हो रहे थे मानो वह जंगल ना होकर कोई समतल उद्यान हो l पेड़ पौधे तथा झाड़ियों को भी उसी प्रकार पार कर रहे थे जैसे पक्षी करता है l सौरभ समझ गया कि वे इस जगत के प्राणी नहीं बल्कि प्रेत हैं l भयाक्रांत होकर वह वहीं धराशाई हो गया ! 


   22
4 Comments

madhura

19-Aug-2023 06:58 AM

nice

Reply

Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:50 PM

बहुत खूब

Reply

Alka jain

15-Jul-2023 02:52 PM

Nice one

Reply